मुआफ़िक रबड़ के खिंच कर सुबह जो, शाम होती है मुआफ़िक रबड़ के खिंच कर सुबह जो, शाम होती है
थकहार कर जब मैं, गम से बोझिल हुआ मौत को पुकारा, पर उसने भी ना छुआ, थकहार कर जब मैं, गम से बोझिल हुआ मौत को पुकारा, पर उसने भी ना छुआ,
एक लदी फदी प्रकृति की तरहअपनी संस्कृति की तरहदेखना तुम भीलाजबाव हुए बिना रह न सकोगे एक लदी फदी प्रकृति की तरहअपनी संस्कृति की तरहदेखना तुम भीलाजबाव हुए बिना रह न सक...
गुज़रा वो वक्त जब हम साथ थे, हो गये मानो सभी आभास है, गुज़रा वो वक्त जब हम साथ थे, हो गये मानो सभी आभास है,
जो बेचारा हरिराम जो बेचारा हरिराम